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दो से चार -05-Jan-2022

भाग 13 



अगले दिन जैसे ही दो बजे , दोनों चैट पर आ गए। पहले तो साहित्यिक एप के उस दिन के विषय को लेकर चर्चा हुई । विषय था "खिड़की" । इस पर कुमार ने एक मुक्तक लिखा था 


नैनों की खिड़की से दिल में उतरने को बेताब हूं


दिल की नजरों से देख तेरी मोहब्बत बेहिसाब हूं


अपने हुस्न पे इतना गुरूर ना कर दिलबर जाना


गर तू चौदहवीं का चांद है, तो मैं भी आफताब हूं 


आशा को यह मुक्तक बहुत पसंद आया । उसने टिप्पणियों की बरसात कर दी । स्टीकर से पैसा भी लुटाया ।  आशा ने भी इस विषय पर एक मुक्तक लिखा था 


दिल की खिड़की को खुला रखिए


किसी की यादों को सजा के रखिए


दिल एक मंदिर है और प्रेम पूजा है 


अपने "आराध्य" को इसमें बसा के रखिए 


कुमार ने आशा के मुक्तक की भूरि भूरि प्रशंसा की और कहा कि यह अध्यात्म और प्रेम के संगम का अद्भुत नमूना है । प्रेम भी अध्यात्म का दूसरा रूप है जो हर कोई नहीं जानता है । पहली बात तो यह है कि वैसा प्रेम हर कोई नहीं करता है जैसा कृष्ण और राधा ने किया था । मीरा ने किया था  । जिसने किया उसी को पता है । राधा और मीरा इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं । 


आशा की इच्छा इस विषय पर अध्यात्म के प्रवचन सुनने की नहीं थी इसलिए  कुमार साहब इस विषय पर और चर्चा करते इससे पहले ही आशा ने उनसे पूछ लिया 


"कॉलेज के बाद का किस्सा बताइए ना सर" । 


कुमार जोर से हंसे और कहा "मेरी जिंदगी में बहुत अधिक रुचि है आपकी । ऐसा क्यों" ? 


"बस ऐसे ही । मैं जानना चाहती थी कि आपके लेखन पर अपनी जिंदगी के अनुभवों का भी कुछ असर  है या नहीं" ? 


"ऐसा कैसे हो सकता है कि आपकी व्यक्तिगत जिंदगी आपके लेखन में परिलक्षित ना हो ?  एक लेखक की सोच , उसके सिद्धांत , उसकी जिंदगी के गुजरे हुए पल सब उसके लेखन में नजर आते हैं । इसके बिना तो लिखना संभव ही नहीं है" । 


"जी, इसीलिए मैं पूछ रही थी कि कॉलेज की पढ़ाई के बाद क्या हुआ था" ? 


आशा घुमा फिराकर वहीं ले आई कुमार को । कुमार ने कहा " कॉलेज से डिग्री लेने के बाद मैं CA का कोर्स करने लगा । इसमें व्यावहारिक ज्ञान के लिए किसी सी ए के अंडर में काम करना होता है । मैंने शहर के जाने माने सी ए गोपाल शर्मा से संपर्क किया और उन्होंने मुझे अपने साथ काम करने की अनुमति दे दी । 


मेरी मेहनत, काम और व्यवहार से वे बहुत प्रभावित हुए । मुझे अपने पुत्र की तरह से प्यार करने लगे थे वे । एक दिन उन्होंने मुझे अपने परिवार से मिलवाया। उनकी पत्नी लक्ष्मी देवी साक्षात लक्ष्मी ही थीं । उनके तीन पुत्रियां थीं और तीनों ही सम वयस्क । तीनों बी कॉम कर रही थीं । उन्होंने मुझे एक काम सौंपा । काम ये था कि मैं एक घंटा रोज उन तीनों को पढ़ाऊंगा और उनकी शंकाओं का समाधान करूंगा । इसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं थी । मैंने उन्हें रोज एक घंटे पढ़ाना शुरू कर दिया । 


तीनों लड़कियां पढ़ने में औसत थीं । ज्यादा सिर दर्द नहीं पालती थीं पढ़ाई को लेकर । फिर भी जितना पढ़ती थी वह लगन से पढ़ती थी। पढ़ते समय कभी कभी वे खुसुर फुसुर भी  करतीं थीं और न जाने किस बात पर तीनों आंखों आंखों में देखकर नीचा मुंह करके हंसती थीं । 


एक दिन जब मैं सी ए साहब के घर गया और गेट खोल रहा था कि अचानक मेरी निगाह ऊपर की मंजिल पर गई । वहां खिड़की पर उनकी छोटी बेटी अनुपमा बैठी थी । उसकी निगाहें मुझ पर ही थी । अचानक निगाहें मिलने से दोनों हड़बड़ा गए थे । वह शरमा गई और मैं घबरा गया । मैं झेंपता हुआ उनके घर में गया । उस दिन मैं ठीक से पढ़ा भी नहीं पाया । मन में ग्लानि के भाव थे । अनुपमा भी बिल्कुल खामोश बैठी थी जबकि दोनों बड़ी बहन नॉर्मल थीं । 


इसके बाद मैंने देखा कि जब भी मैं उस घर में जाता , खिड़की पर एक परछाई सी उभरती थी लेकिन मैं देख नहीं पाता था कि वो कौन थी । 


बड़ी बेटी अलका बहुत हंसमुख स्वभाव की थी । वह कभी कभी पढ़ाई के अलावा इधर उधर की बातें भी कर लेती थी । एक दिन पढ़ाई खत्म होने के बाद अलका ने मेरे परिवार के बारे में पूछा तो मैने बता दिया । मुझसे शादी के बारे में पूछा तो बता दिया का अभी नहीं हुई है और जब तक सी ए की डिग्री नहीं मिल जाती, करूंगा भी नहीं । यह जानकर वे तीनों मुस्कुरा दीं । उनके दिमाग में क्या चल रहा था , ये वो ही जानती थीं। इसकी भनक मुझे नहीं थी । 


एक दिन सी ए साहब ने मुझे फिर से खाने पर बुलाया । सब लोगों ने मेरी खूब आवभगत की । बड़े मनुहार से भोजन कराया गया । मिसेज शर्मा बतातीं जा रहीं थीं कि यह डिश अलका ने बनाई है , यह डिश अंजलि ने बनाई है और यह डिश अनुपमा ने बनाई है । यह बात सच है कि मैं शुरू से ही खाने का बहुत शौकीन रहा हूं पर इतना भी नहीं कि पेट फूट जाए । मैंने अपने हाथ खड़े कर दिए और कहा "मैडम, मैं जूठन बिल्कुल नहीं छोड़ता हूं इसलिए मुझे जूठन छोड़ने को मजबूर मत कीजिए" । तब मानी वे सब । आखिर में उन्होंने कहा "अच्छा ये आइसक्रीम और आम रबड़ी तो अभी टेबल पर ही नहीं आई है । ऐसा करो कि अभी थोड़ा गपशप करो । तब तक खाना कुछ कुछ पच जाएगा । फिर ये दोनों चीजें सर्व कर देना । मैंने भी हामी भर दी । 


हम सब लोग गपशप करने लग गए । जोक्स का दौर चल निकला । जब हमारा नंबर आया तो हमने कहा कि हमें तो जोक्स आते ही नहीं हैं । लेकिन तीनों बहनें अड़ गई कि हमें  सुनाना ही पड़ेगा । हम शांत बैठे रहे । अचानक अलका बोली "अच्छा , आप जोक नहीं सुनाना चाहते हैं तो कोई बात नहीं , गाना ही सुना दीजिए" । 


मैं चौंका । मुझे कब देख लिया उन्होंने गाते हुए ? मैंने कहा "ये तो और अधिक कठिन काम है । गाना तो बिल्कुल ही नहीं आता है" 


इतने में अनुपमा बोली "नहीं गाना है तो मत गाइए , मगर झूठ तो मत बोलिए । हमने आपको गुनगुनाते हुए देखा है" 


अब तो कोई विकल्प बचा ही नहीं था । सुनाना ही पड़ा "ओ मेरे दिल के चैन , चैन आए मेरे दिल को दुआ कीजिए" । मेरा पसंदीदा गाना था वो सुना दिया । गाया भी पूरी तल्लीनता के साथ । समां बंध गया था । तीनों बहनों ने खूब प्रशंसा की । 


इस तरह लगभग घंटा भर हो गया मस्ती करते करते । मिसेज शर्मा आइसक्रीम और आम रबड़ी ले आईं । अब इतनी गुंजाइश हो गई थी कि उनका रसास्वादन किया जा सके । इसी बीच सी ए साहब ने हमसे शादी के बारे में पूछा । 


हमने अपने विचार बता दिए "सर, मेरा मानना है कि शादी माता-पिता की मर्जी से ही करनी चाहिए। उन्होंने हमें पैदा किया, पाला पोसा । सब कुछ हम पर कुर्बान कर दिया । फिर शादी अपनी मर्जी से करके उनका दिल नहीं तोडना चाहिए । फिर धर्म, जाति भी तो कोई मायने रखती है" 


मेरे विचार जानकर सी ए साहब खामोश हो गए । कहने लगे "बहुत श्रेष्ठ विचार हैं आपके । मगर अब आपकी पीढ़ी ऐसा नहीं सोचती है। उनका कहना है कि जिंदगी तो भगवान की देन है इसलिए इस पर केवल हमारा ही अधिकार है । इस कारण शादी ब्याह के फैसले खुद को ही करने चाहिए" । 


मैंने प्रतिवाद किया "उन्हें (माता पिता) कितना अनुभव है । उसका भी तो फायदा मिलेगा ना । इसलिए मेरे हिसाब से तो उन्हीं पर छोड़ देना चाहिए शादी का निर्णय । फिर वे हमारे माता-पिता हैं कोई दुश्मन तो हैं नहीं" ? 


सी ए साहब ने भी हथियार डाल दिए । तीनों बहनें थोड़ा थोड़ा प्रतिवाद करतीं रहीं लेकिन हमारे सामने उनकी एक ना चली । रात के ग्यारह बज गए थे । इसलिए हम अपने कमरे पर आ गए । 


इसी बीच कुमार ने देखा कि चार बजकर पांच मिनट हो चुके हैं । उन्होंने लिखा " मैंने अपनी जिंदगी के सब राज आपको सामने खोल कर रख दिये हैं । अब आपकी बारी है दिव्या जी । कल  आप अपनी जिंदगी के सारे राज खोलेंगी । ठीक है" !


इस तरह इस धारावाहिक का प्रथम भाग यहां समाप्त होता है ।


 


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7 Comments

Barsha🖤👑

01-Feb-2022 09:08 PM

Nice part

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Arman

29-Jan-2022 06:29 PM

Kafi achchi kahani thi, apki lekhni impressive h, aapne kaha kahani ka pahla bhag khtm ho gaya arthat iske season ki aane ki puri sambhavna h

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Seema Priyadarshini sahay

27-Jan-2022 09:35 PM

बहुत बढ़िया

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